वास्तुशास्त्र में द्वार वेध और उपाय

वास्तुशास्त्र में द्वार वेध और उपाय

आपको मालूम होना चाहिए कि मकान के प्रवेश द्वार के सामने कोई रोड, गली या टी
जक्शन हो, तो ये गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न करते हैं, खासकर उन भवनों में जो
दक्षिण व पश्चिम मुखी होते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसे मकान में निवास करने
वाले लोगों को प्रत्येक काम में असफलता ही हाथ लगती है।

वास्तुदोष से मुक्ति के लिए यह उपाय करें :-
– आप अपने मकान के बाहर उस नकारात्मक टी की तरफ मुँह किए 6 इंच का एक अष्टकोण
आकार का मिरर लटका दें। ऐसा करने से दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं की टी का
सम्पूर्ण वास्तुदोष ठीक हो जाता है।

– आपके मकान में कमरे की खिड़की, दरवाजा या बॉलकनी ऐसी दिशा में खुले, जिस ओर
कोई खंडहरनुमा मकान स्थित हो। या वहाँ कोई उजाड़ जमीन या प्लाट पड़ा हो या फिर
बरसों से बंद पड़ा मकान हो, श्मशान या कब्रिस्तान स्थित हो, तो यह अत्यंत अशुभ
है। ऐसे मकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए किसी शीशे
की प्लेट में कुछ छोटे-छोटे फिटकरी के टुकड़े आदि खिड़की या दरवाजे या बालकनी
के पास रख दें तथा उन्हें हर महीने नियम से बदलते रहें, तो वास्तुदोष से
मुक्ति मिलती है।

– यदि मकान के किसी कमरे में सोने पर तरह-तरह के भयावह सपने आते रहते हों,
इसके कारण आपको रात में नींद नहीं आती
हो, बुरे सपने देखने के बाद छोटे बच्चे सो नहीं पाते और रतजगा करने लगते हैं
अथवा रोते रहते हैं, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कमरे में एक जीरो वॉट
का पीले रंग का नाइट लैम्प या बल्ब जलाए रखें। यह उस कमरे में बाहर से आने
वाली नकारात्मक ऊर्जा को मार भगाता है।

– कभी-कभी बच्चों को मकान के किसी कमरे में अकेले जाने से डर लगता है, उस कमरे
में सोने के नाम से ही उनके रोंगटे खड़े
हो जाते हैं, ऐसे में बेड या पलंग के सिरहाने के पास वाले दोनों किनारों में
ताँबे के तार से बने स्प्रिंगनुमा छल्ले डाल दें। ये छल्ले
नकारात्मकता को दूर करते हैं। छल्लों को कोने पर डालने से और तेजी से लाभ
प्राप्त होगा।

*Rajesh Tamrakar*
*Jyotish & Vastu Advisor*

दस महाविद्या : माता पार्वती के दस रूप

दस महाविद्या : माता पार्वती के दस रूप

कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है।

इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। यहां प्रस्तुत है माता के दस रूपों का वर्णन।

1. काली, 2. तारा, 3. षोडशी, (त्रिपुरसुंदरी), 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।

कहते हैं कि जब सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस निषेध पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपना प्रभाव दिखलाया, जिस कारण शिव को उन्हें जाने की आज्ञा देने पर मजबूर होना पड़ा। यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। इनकी उत्पत्ति में मतभेद भी हैं।

अत: माता पर्वती का ध्यान करना और उन्हीं की भक्ति पर कायम रहने वाले के लिए जीवन में कभी शोक और दुख नहीं सहना पड़ता। माता सिर्फ एक ही है, अनेक नहीं यह बात जो जानता है वहीं शिव की शक्ति के ओज मंडल में शामिल हो जाता है।

माता पार्वती के अन्य नाम

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माता पार्वती , उमा , महेश्वरी , दुर्गा , कालिका , शिवा , महिसासुरमर्दिनी , सती , कात्यायनी , अम्बिका , भवानी , अम्बा , गौरी , कल्याणी , विंध्यवासिनी , चामुन्डी , वाराही , भैरवी , काली , ज्वालामुखी , बगलामुखी , धूम्रेश्वरी , वैष्णोदेवी , जगधात्री , जगदम्बिके , श्री , जगन्मयी , परमेश्वरी , त्रिपुरसुन्दरी , जगात्सारा , जगादान्द्कारिणी , जगाद्विघंदासिनी , भावंता , साध्वी , दुख्दारिद्र्य्नाशिनी , चतुर्वर्ग्प्रदा , विधात्री , पुर्णेँदुवदना , निलावाणी, पार्वती ,

सर्वमँगला , सर्वसम्पत्प्रदा , शिवपूज्या , शिवप्रिता , सर्वविध्यामयी , कोमलाँगी , विधात्री , नीलमेघवर्णा , विप्रचित्ता , मदोन्मत्ता , मातँगी , देवी खडगहस्ता , भयँकरी ,पद्`मा , कालरात्रि , शिवरुपिणी , स्वधा , स्वाहा , शारदेन्दुसुमनप्रभा , शरद्`ज्योत्सना , मुक्त्केशी , नँदा , गायत्री , सावित्री , लक्ष्मीअलँकार सँयुक्ता , व्याघ्रचर्मावृत्ता , मध्या , महापरा , पवित्रा , परमा , महामाया , महोदया इत्यादी देवी भगवती के कई नाम हैँ:

समस्त भारत मेँ देवी के शक्ति पीठ हैँ

01) कामरूप पीठ

02) काशिका पीठ

03) नैपल्पिथ

04) रौद्र -पर्वत

05) कश्मीर पीठ

06) कान्यकुब्ज पीठ

07) पूर्णागिरी पीठ

08) अर्बुदाचल पीठ

09) अमृत केश्वर पीठ

10) कैलास पीठ

11) शिव पीठ

12 ) केदार पीठ

13 ) भृगु पीठ

14 ) कामकोटी पीठ

15 ) चंद्रपुर पीठ

16 ) ज्वालामुखी

17 ) उज्जयिनी पीठ इत्यादी

और हर प्राँत मेँ देवी के विविध स्वरुप की पूजा होती है और कई शहर देवी के स्वरुप की आराधना के केन्द्र हैँ।

शाक्त पूजा की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी पूरे बँगाल की आराध्या

काली कलकत्ते वाली ” काली ” भी हैँ और गुजरात की अँबा माँ भी हैँ

पँजाब की जालन्धरी देवी भी वही हैँ

तो विन्ध्य गुफा की विन्ध्यवासिनी भी वही

माता रानी हैँ जो जम्मू मेँ वैष्णोदेवी कहलातीँ हैँ

और त्रिकुट पर्बत पर माँ का डेरा है ॥

आसाम मेँ ताँत्रिक पूजन मेँ कामाख्या मँदिर बेजोड है ॥

तो दक्षिण मेँ वे कामाक्षी के मँदिर मेँ विराजमान हैँ

और चामुण्डी परबत पर भी वही हैँ शैलपुत्री के रुप मेँ

वे पर्बताधिराज हिमालय की पुत्री पारबती कहलातीँ हैँ

तो भारत के शिखर से पग नखतक आकर,

कन्याकुमारी की कन्या के रुप मेँ भी वही पूजी जातीँ हैँ ॥

महाराष्ट्र की गणपति की मैया गौरी भी वही हैँ

और गुजरात के गरबे और रास के नृत्य ९ दिवस और रात्रि को

माताम्बिके का आह्वान करते हैँ ..

शिवाजी की वीर भवानी रण मेँ युध्ध विजय दीलवानेवाली वही हैँ —

गुजरात में, माँ खोडीयार स्वरूप से माता पूजी जातीं हैं

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके

शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !!

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या देवी सर्वभूतेषु , मातृ रूपेण संस्थिता !

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः !!

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दुर्गा – पूजा

Rajesh Tamrakar

Jyotish & Vastu Advisor

408/2C SBI colony

Single Story

Janki Nagar

Jabalpur.

M)9826446569

नवरात्र में ग्रह दोष शांति

नवरात्र में ग्रह दोष शांति
नौ दिनों तक देवी की आराधना, पूजा और व्रत करके न सिर्फ शक्ति संचय किया जाता है, वरन् नवग्रहों से जनित दोषों की शांति भी इस समय की जा सकती है। जन्म कुंडली में यदि सूर्य ग्रह कमजोर हो तो स्वास्थ्य लाभ के लिए शैल पुत्री माता की उपासना से लाभ मिलता है। चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कूष्मांडा माता की उपासना से लाभ मिलता है।
मंगल ग्रह के लिए स्कंदमाता की उपासना से लाभ मिलता है। बुध ग्रह की शांति एवं व्यापार और अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए कात्यायनी माता की उपासना से लाभ मिलता है गुर ग्रह के लिए महागौरी माता की उपासना से लाभ मिलता है। शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्री माता और शनि ग्रह के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कालरात्रि माता की उपासना से लाभ मिलता है। राहु की शांति के लिए ब्रह्मचारिणी माता की उपासना और केतु ग्रह की लिए चंद्रघंटा माता
की उपासना से लाभ मिलता है।

गणगौर पूजन और व्रत विधि

— गणगौर का यह त्योहार चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो नवविवाहिताएँ प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।
नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गयी। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है।

आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौ ) के साथ अपनी ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के बरतन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनाती हैं। जहाँ पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँ विसर्जन किया जाता है वह स्थान ससुराल माना जाता है।

राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्योहार है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीय को तथा पार्वतीय ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है। राजस्थान से लगे ब्रज के सीमावर्ती स्थानों पर भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास की तीज को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है। दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानि कि विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का स्थान गाँव का कुँआ या तालाब होता है। कुछ स्त्रियाँ जो विवाहित होती हैं वो यदि इस व्रत की पालना करने से निवृति चाहती हैं वो इसका अजूणा करती है (उद्यापन करती हैं) जिसमें सोलह सुहागन स्त्रियों को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती हैं |

इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती है एवं उनका पूजन किया जाता है। इसके पश्चात गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिन्दूर से स्त्रियाँ अपनी माँग भरती हैं। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।

गौरी पूजन का यह त्योहार भारत के सभी प्रांतों में थोड़े-बहुत नाम भेद से पूर्ण धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं। इस दिन स्त्रियां सुंदर वस्त्र औ आभूषण धारण करती हैं। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। व्रत धारण करने से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं। इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर (स्थापना करके) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं- कांच की चूड़ियाँ, महावर, सिन्दूर , रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़या जाता है।गनगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गनगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों तथा सास के कपड़ो का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गनगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है। ससुराल में भी वह गनगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है। गनगौर पूजन के समय स्त्रियों गौरीजी की कथा भी कहती हैं।चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन करके सूहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है। फिर भोग लगाने के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिन्दूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं। गौरीजी का पूजन दोपहर को होता है। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गनगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए निषिद्ध है।

नवरात्र स्थापना के शुभ मुहूर्त

नवरात्र स्थापना के शुभ मुहूर्त
चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 11 अप्रैल 2013 के दिन से होगा. पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए.

दिनांक 11अप्रैल 2013 से शुरू संवत -2070 के प्रारम्भ चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 11 अप्रैल 2013 के दिन से होगा
घट स्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त समय सुबह 6.22 से 7.50 तक रहेगा, उसके बाद
सूर्योदय से सुबह 9.20 बजे तक लाभ,
अमृत के चौघडि़ए में और सुबह 10.49 से दोपहर 12 बजे तक
देवी पुराण में नवरात्र के दिन देवी का आह्वान, स्थापना व पूजन का समय प्रात: काल माना गया है।
मगर इस दिन चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग वर्जित बताया गया है। हालांकि इस दिन वैधृति योग का संयोग तो नहीं हो रहा है लेकिन दोपहर 1.39 बजे चित्रा नक्षत्र आएगा। इसलिए प्रात:काल देवी का आह्वान कर घट स्थापना करना श्रेष्ठ रहेगा।

इस वर्ष की चैत्र नवरात्र तिथियाँ इस प्रकार होगी ——

पहला नवरात्र, प्रथमा तिथि, 11 अप्रैल 2013, दिन बृस्पतिवार
दूसरा नवरात्र, द्वितीया तिथि 12 अप्रैल 2013, दिन शुक्रवार
तीसरा नवरात्रा, तृतीया तिथि, 13 अप्रैल 2013, दिन शनिवार
चौथा नवरात्र , चतुर्थी तिथि, 14 अप्रैल 2013 , दिन रविवार
पांचवां नवरात्र , पंचमी तिथि , 15 अप्रैल 2013, दिन सोमवार
छठा नवरात्रा, षष्ठी तिथि, 16 अप्रैल 2013, दिन मंगलवार
सातवां नवरात्र, सप्तमी तिथि , 17 अप्रैल 2013,दिन बुधवार<
आठवां नवरात्रा , अष्टमी तिथि, 18 अप्रैल 2013, दिन बृहस्पतिवार
आठवां नवरात्रा , अष्टमी तिथि, 19 अप्रैल 2013, दिन शुक्रवार सुबह 06:55 तक
नौवां नवरात्र, नवमी तिथि 20 अप्रैल, दिन शनिवार सुबह 08:15 तक

स्वस्थ रहने का आसन उपाय —

मित्रो आप इन नियमो का पालण पूरी ईमानदारी से अपनी ज़िंदगी मे करे !!
ये नियमो का पालण न करने से ही बीमारियाँ ज़िंदगी मे आती हैं !!
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सुबह उठते ही सबसे पहले हल्का गर्म पानी पिये !! 2 से 3 गिलास जो रोज पिये !
पानी हमेशा बैठ कर पिये !
पानी हमेशा घूट घूट करके पिये !!

घूट घूट कर इसलिए पीना है ! ताकि सुबह की जो मुंह की लार है इसमे ओषधिए गुण
बहुत है ! ये लार पेट मे जानी चाहिए ! वो तभी संभव है जब आप पानी बिलकुल घूट
घूट कर मुंह मे घूमा कर पिएंगे !

इसके बाद दूसरा काम पेट साफ करने का है ! रोज पानी पीकर सुबह शोचालय जरूर जाये
!पेट का सही ढंग से साफ न होना 108 बीमारियो की जड़ है !

खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है !
हमेशा डेड घंटे बाद ही पानी पीएं !

खाना खाने के बाद अगर कुछ पी सकते हैं उसमे तीन चीजे आती हैं !!

1) जूस
2) छाज (लस्सी) या दहीं !
3) दूध

सुबह खाने के बाद अगर कुछ पीना है तो हमेशा जूस पिये !
दोपहर को दहीं खाये ! या लस्सी पिये !
और दूध हमेशा रात को पिये !!

इन तीनों के क्रम को कभी उल्टा पुलटा न करे !!

इसके इलावा खाने के तेल मे भूल कर भी refine oil का प्रयोग मत करे !
अभी के अभी घर से निकाल दें ! सरसों के तेल का प्रयोग करे ! या देशी गाय के
दूध का शुद्ध घी खाएं ! ! (पतंजलि का सरसों का तेल एक दम शुद्ध है !(शुद्ध
सरसों के तेल की पहचान है मुंह पर लगाते ही एक दम जलेगा ! और खाना बनाते समय
आंखो मे हल्की जलन होगी !

चीनी का प्रयोग तुरंत बंद कर दीजिये ! गुड खाना का प्रयोग करे ! या शक्कर खाये
!!

खाने बनाने मे हमेशा सेंधा नमक या काला नमक का ही प्रयोग करे !! आयोडिन युक्त
नमक कभी न खाएं !!

सुबह का भोजन सूर्य उद्य ! होने के 2 से 3 घंटे तक कर लीजिये ! (अगर 7 बजे
आपके शहर मे सूर्य निकलता है ! तो 9 या 10 बजे तक सुबह का भोजन कर लीजिये ! इस
दौरान जठर अग्नि सबसे तेज होती है ! सुबह का खाना हमेशा भर पेट खाएं ! सुबह के
खाने मे पेट से ज्यादा मन संतुष्टि होना जरूरी है ! इसलिए अपनी मनपसंद वस्तु
सुबह खाएं !!

खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट जाएँ और अगर शरीर मे
आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे ज्यादा नहीं !

इसी प्रकार दोपहर को खाना खाने के तुरंत बाद ठीक 20 मिनट के लिए बायीं लेट
जाएँ और अगर शरीर मे आलस्य ज्यादा है तो 40 मिनट मिनट आराम करे ! लेकिन इससे
ज्यादा नहीं !

रात को खाना खाने के तुरंत बाद नहीं सोना ! रात को खाना खाने के बाद बाहर सैर
करने जाएँ ! कम से कम 500 कदम सैर करे ! और रात को खाना खाने के कम स कम 2
घंटे बाद ही सोएँ !

ब्रह्मचारी है (विवाह के बंधन मे नहीं बंधे ) तो हमेशा सिर पूर्व दिशा की और
करके सोएँ ! ब्रह्मचारी नहीं है तो हमेशा सिर दक्षिण की तरफ करके सोएँ ! उत्तर
और पश्चिम की तरफ कभी सिर मत करके सोएँ !

मैदे से बनी चीजे पीज़ा ,बर्गर ,hotdog,पूलड़ोग , आदि न खाएं ! ये सब मेदे को
सड़ा कर बनती है !! कब्ज का बहुत बड़ा कारण है !!

इन सब नियमो का अगर पूरी ईमानदारी से प्रयोग करेंगे ! 1 से 2 महीने मे ऐसा
लगेगा पूरी जिंदगी बदल गई है ! मोटापा है तो कम हो जाएगा ! hihgh
BP,cholesterol,triglycerides,सब level पर आना शुरू हो जाएगा ! HDL बढ्ने
लगेगा ! LDL ,VL DL कम होने लगेगा !! और भी बहुत से बदलाव आप देखेंगे !!

कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय

कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय 

— कर्ज या ऋण शब्द के भीतर कष्ट छुपा होता है। अगर किसी व्यक्ति को कर्ज चुकाना हो तो उसकी पूरी जिंदगी तनाव में गुजर जाती है और रातो की नीद और दिन का चैन हराम हो जाता है .हम कुछ वास्तु 
के उपाय अपनाकर कर्ज के 
 
 
 

1- कर्ज से बचने के लिए उत्तर व दक्षिण की दीवार बिलकुल सीधी बनवाएँ।

2-उत्तर की दीवार हलकी नीची होनी चाहिए। कोई भी कोना कटा हुआ न हो, न ही कम होना चाहिए। गलत दीवार से धन का अभाव हो जाता है।
3-यदि कर्ज अधिक बना हुआ है और परेशान हैं तो ईशान कोण को 90 डिग्री से कम कर दें।
4-इसके अलावा उत्तर-पूर्व भाग में भूमिगत टैंक या टंकी बनवा दें। टंकी की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई के अनुरूप आय बढ़ेगी। उत्तर-पूर्व का तल कम से कम 2 से 3 फीट तक गहरा करवा दें।
5-दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण दिशा में भूमिगत टैंक, कुआँ या नल होने पर घर में दरिद्रता का वास होता है।
6- दो भवनों के बीच घिरा हुआ भवन या भारी भवनों के बीच दबा हुआ भूखण्ड खरीदने से बचें क्योंकि दबा हुआ भूखंड गरीबी एवं कर्ज का सूचक है।
7-उत्तर दिशा की ओर ढलान जितनी अधिक होगी संपत्ति में उतनी ही वृद्धि होगी।
8-यदि कर्ज से अत्यधिक परेशान हैं तो ढलान ईशान दिशा की ओर करा दें, कर्ज से मुक्ति मिलेगी।
9-पूर्व तथा उत्तर दिशा में भूलकर भी भारी वस्तु न रखें अन्यथा कर्ज, हानि व घाटे का सामना करना पड़ेगा।
10-भवन के मध्य भाग में अंडर ग्राउन्ड टैंक या बेसटैंक न बनवाएँ। मकान का मध्य भाग थोड़ा ऊँचा रखें। इसे नीचा रखने से बिखराव पैदा होगा।
11-यदि उत्तर दिशा में ऊँची दीवार बनी है तो उसे छोटा करके दक्षिण में ऊँची दीवार बना दें।
12-इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम के कोने में पीतल या ताँबे का घड़ा लगा दें। उत्तर या पूर्व की दीवार पर उत्तर-पूर्व की ओर लगे दर्पण लाभदायक होते हैं। दर्पण के फ्रेम पर या दर्पण के पीछे लाल, सिंदूरी या 
मैरून कलर नहीं होना चाहिए। दर्पण जितना हलका तथा बड़े आकार का होगा, उतना ही लाभदायक होगा, व्यापार तेजी से चल पड़ेगा तथा कर्ज खत्म हो जाएगा।
13- दक्षिण तथा पश्चिम की दीवार के दर्पण हानिकारक होते हैं
14-दक्षिणी-पश्चिमी, पश्चिमी-उत्तरी या मध्य भाग का चमकीला फर्श या दर्पण गहराई दर्शाता है, जो धन के विनाश का सूचक होता है। फर्श पर मोटी दरी, कालीन आदि बिछाकर कर्ज व दिवालिएपन से बचा जा सकता है। दरवाजे उत्तर-पूर्व दिशा में होने चाहिए।
15-पश्चिमी-दक्षिणी भाग में फर्श पर उल्टा दर्पण रखने से फर्श ऊँचा उठ जाता है। फलतः कर्ज से मुक्ति मिलती है। उत्तर या पूर्व की ओर भूलकर भी उल्टा दर्पण न लगाएँ, अन्यथा कर्ज पर कर्ज होते चले जाएँगे। गलत दिशा में लगे दर्पण जबरदस्त वास्तुदोष के कारक होते हैं। सीढ़ियाँ कभी भी पूर्व या उत्तर की दीवार से न बनाएँ। सीढ़ियों का वजन दक्षिणी दीवार पर ही आना चाहिए। ऐसा न होने पर आय के लाभ के साधन खत्म हो जाते हैं। सीढ़ी हमेशा क्लाक वाइज दिशा में ही बढ़ाएँ। कर्ज से बचने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण की ओर बढ़ें। सीढ़ी की पहली पेड़ी मुख्य द्वार से दिखनी नहीं चाहिए, नहीं तो लक्ष्मी घर से बाहर चली जाती है।

 

सुख , शान्ति व सफलता के लिये.- वास्तु सुमंगल दीप.

सुख , शान्ति व सफलता के लिये.- वास्तु सुमंगल दीप.

एक कांच या चीनी मिट्टी का लगभग 5″ 6″ इंच व्यास का एक सुन्दर कटोरा लें और उसे आधे से कुछ अधिक पानी से भरदें । अब इसमें कांच का एक गिलास उल्टा करके इस प्रकार से रख दें कि वह छोटे दीपक के लिये एक स्टेन्ड सा बन जावे और फिर उसके उपर एक छोटा कटोरा कांच का लेकर उसमें घी, तेल या मोम अपनी सामर्थ्य अनुसार भर कर उसमें रुई की सामान्य बत्ती बनाकर लगा दें । कांच की कुछ गोटियां (बच्चों के खेलने की) इस पानी में डाल दे .एक्वेरियम में डालने वाले कुछ रंगीन पत्थर इसमें डाल दें और अन्त में गुलाब फूल की कुछ पंखुडियां भी इस पानी में डालकर सूर्यास्त के बाद इस दीपक को प्रज्जवलित कर अपने घर के बैठक के कमरे में इशान कोण [उत्तर- पूर्व] में रख दें । यदि इस क्षेत्र में इसे रखने में कुछ असुविधा लग रही हो तो वैकल्पिक स्थान के रुप में आप इसे उत्तर दिशा में भी रख सकते हैं ।

हमारा शरीर जिन पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, वायु ,आकाश और अग्नि) से निर्मित है उन्हीं पंचत्तवों का सन्तुलन इस दीपक के द्वारा हमारे घर-परिवार में कायम रहता है और इसी सामंजस्य से जीवन में नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता बनी रहती है जो हमारे शान्तिपूर्ण, सुखी व समृद्ध जीवन में मददगार साबित होती है ।

प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद जलाये जाने वाले इस दीपक को आप सोने के पूर्व बन्द भी कर दें और कटोरा रात भर वहीं रखा रहने दें । सुबह इस पानी को घर के आठों कोण में मन ही मन इस भाव के साथ छिड़क दे की घर की सारी नकारात्मकता घर से बाहर निकल रही है और उसके स्थान पर ब्रम्हांड की सकारात्मक उर्जा का प्रवेश हो रहा है और इससे घर की सारे वास्तु दोष ठीक होते जा रहे हैं । इस प्रक्रिया से घर का शुद्धिकरण आप स्वयम कर सकते है ,