कैरियर में मिलेगी अपार सफलता —

कैरियर में मिलेगी अपार सफलता —

हर व्यक्ति अपनी शिक्षा, आर्थिक क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करता है और उसे प्राप्त करने के लिए कोशिश करता है। अगर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसे कैरियर में जल्द सफलता मिले तो उसे अपने घर के वास्तु में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।

– आपके घर या दफ्तर में आपकी नेमप्लेट आगुंतको को सपष्ट रूप से नजर आनी चाहिए। कैरियर में सफलता के लिए नेमप्लेट पर रात के वक् त रोशनी डालें।

– रोज सुबह उगते सुरज हाथों में जल लेकर उज्जवल भविष्य के लिए संकल्प करें और ईश्वर से अपने शक्ति और सामथ्र्य में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें।

– कैरियर सौभाग्य वृद्धि के लिए घर के आंगन में तुलसी पौधा लगाएं।

– कैरियर में सफलता प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा में जंपिंग फिश, डॉल्फिन या मछालियों के जोड़े का प्रतीक चिन्ह लगाए जाने चाहिए। इससे न केवल बेहतर कैरियर की ही प्राप्ति होती है बल्कि व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है।

– कैरियर बनाने के लिए घर आपका ध्यान अपने लक्ष्य की ओर रहे इसलिए शयन कक्ष मेंवायव्य में पलंग लगाएं।

– अगर आप विदेश में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं तो अपने कमरे में स्टडी टेबल पर एक ग्लोब रखें।

– दक्षिण दिशा की दिवार पर विश्व मानचित्र लटकाएं।

– घर की उत्तर दिशा में स्थित लॉबी या बॉल्कनी में एक सुन्दर सा छोटा वाटर फाउंटेन रखें। इसे रोज सुबह शाम जरूर चलाएं।

नवम सिद्धिदात्री

माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है और हाथों में कमल शंख गदा सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है। देव यक्ष किन्नर दानव ऋषि-मुनि साधक विप्र और संसारी जन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नवें दिन करके अपनी जीवन में यश बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री देवी उन सभी महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती हैं , जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं , उनको इस संसार में धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है , जो सफेद वस्त्रालंकार से युक्त महा ज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। नवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप को विसर्जन की परम्परा भी गंगा , नर्मदा , कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परम्परा भी है। नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है।
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु सिद्दी  रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: |
 

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नवरात्र के तीसरे दिन माता चन्द्रघंट की पूजा की जाती है.

नवरात्र के तीसरे दिन भगवती मां दुर्गा की तीसरी शक्ति भगवती चंद्रघण्टा की उपासना की जाती है। मां का यह रूप पाप-ताप एवं समस्त विघ्न बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता है और परम शांति दायक एव

ं कल्याणकारी है। मां के मस्तक में घंटे की भांति अर्घचंद्र सुशोभित है। इसीलिए मां को चंद्रघण्टा कहते हैं। कंचन की तरह कांति वाली भगवती की दश विशाल भुजाएं है। दशों भुजाओं में खड्ग, वाण, तलवार, चक्र, गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं। मां सिंह पर सवार होकर मानो युद्ध के लिए उद्यत दिखती हैं। मां की घंटे की तरह प्रचण्ड ध्वनि से असुर सदैव भयभीत रहते हैं। तीसरे दिन की पूजा अर्चना में मां चंद्रघंटा का स्मरण करते हुए साधकजन अपना मन मणिपुर चक्र में स्थित करते हैं। उस समय मां की कृपा से साधक को आलौकिक दिव्य दर्शन एवं दृष्टि प्राप्त होती है। साधक के समस्त पाप-बंधन छूट जाते हैं। प्रेत बाधा आदि समस्याओं से भी मां साधक की रक्षा करती हैं।

नवरात्र का तीसरा दिन भगवती चंद्रघण्टा की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन मणिपूरक चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके चंद्रघण्टा स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।

सबसे पहले मां चंद्रघण्टा की मूर्ति अथवा तस्वीर का लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर श्री दुर्गा यंत्र के साथ स्थापित करें तथा हाथ में लाल पुष्प लेकर मां चंद्रघण्टा का ध्यान करें।

ध्यान के बाद हाथ में लिए हुए पुष्प मां की तस्वीर पर अर्पण करें तथा अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां के 108 बार मंत्र जाप करें। मंत्र इस प्रकार है- ओम् चं चंद्रघण्टाय हुं॥ ध्यान रहे, मंत्र जाप से पहिले मां का तथा दुर्गा यंत्र सहित अखण्ड ज्योति क ा पंचोपचार विधि से पूजन करें। लाल पुष्प चढाएं तथा लाल नैवेद्य का भोग लगाएं। मंत्र पूर्ण होने पर मां की प्रार्थना करें तथा भजन कीर्तन के बाद आरती करें।